कृष्ण के परामर्श ‘तुम योगी बनो’ का अनुकरण

अंतर्राष्ट्रिय योग दिवस के उपलक्ष्य में

“योगी को, शरीर पर नियंत्रण करने वाले तपस्वियों, ज्ञान पर चलने वालों तथा कर्म के पथ पर चलने वालों से भी श्रेष्ठ माना गया है; इसलिए हे अर्जुन, तुम योगी बनो!” भगवद्गीता के चतुर्थ अध्याय में अर्जुन को कहे भगवान् कृष्ण के ये शब्द हम सभी को यह परामर्श देते हैं कि अनिश्चताओं और विलासिता से भरे जीवन के महाभारत में अर्जुन की भाँति संघर्षरत रहते हुए, योगी का जीवन जीना सुख का मूल है।

योग विज्ञान जो भारतवर्ष की धरोहर है, सम्पूर्ण संसार के लिए एक उपहार है; इसी कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसकी महत्ता को समझते हुए 2015 में, भारत सरकार के अनुरोध पर, 21 जून को विश्व योग दिवस के रूप में संघोषित करके सम्पूर्ण मानवजाति के कल्याण की पुष्टि की। पश्चिम में ‘योग के जनक’ कहे जाने वाले परमहंस योगानन्द जिन्होंने अपने जीवन के महत्त्वपूर्ण 30 वर्ष से भी अधिक समय पश्चिम में बिताया तथा भारत में योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ इण्डिया और अमेरिका में सेल्फ़ रियलाईज़ेशन फ़ेलोशिप की स्थापना करके ध्यान का क्रियायोग विज्ञान, जो योग की एक उन्नत और विशिष्ट शैली है, की शिक्षाओं का प्रचार प्रसार करके मानवजाति को एक सेतु प्रदान किया।

योगानन्दजी, अपनी पुस्तक ‘योगी कथामृत’, जिसे मन और आत्मा के द्वार खोल देने वाली पुस्तक आँका जाता है, के 26वें अध्याय में क्रियायोग का अर्थ बताते हैं – “‘एक विशिष्ट कर्म या विधि (क्रिया) द्वारा अनंत परमतत्त्व के साथ मिलन (योग)।’ इस विधि का निष्ठापूर्वक अभ्यास करने वाला योगी धीरे-धीरे, कर्म-बंधन से या कार्य-कारण संतुलन की नियमबद्ध शृंखला से मुक्त हो जाता है।”

भगवान कृष्ण भगवद्गीता में इसका उल्लेख करते हुए कहते हैं, ”अपान वायु में प्राणवायु के हवन द्वारा और प्राणवायु में अपान वायु के हवन द्वारा योगी प्राण और अपान, दोनों की गति को रुद्ध कर देता है और इस प्रकार वह प्राण को हृदय से मुक्त कर लेता है और प्राणशक्ति पर नियंत्रण प्राप्त कर लेता है।” अर्थात् “योगी फेफड़ों और हृदय की कार्यशीलता को शांत कर प्राणशक्ति की उस अतिरिक्त आपूर्ति की सहायता से शरीर में होने वाले ह्रास को रोक देता है और अपान को नियंत्रण में कर शरीर में वृद्धत्त्व लाने वाले परिवर्तनों को भी रोक देता है।”

यह सब जान लेने के बाद इस महान् परिवर्तनकारी योग को सीखने की उत्कंठा का जगना स्वाभाविक है। इसका निदान भी विद्यमान है। पाठकगण योगदा सत्संग सोसाइटी की वेबसाइट पर जा सकते हैं, जो एक ऐसा द्वार है जहाँ से गृह अध्ययन की की पाठमाला प्राप्त कर, योग की इस वैज्ञानिक प्रविधि को सीखना अत्यंत सरल है। पाठमाला के लिए नामांकन करवाकर बुनियादी प्रविधियों का कुछ समय अभ्यास करके इस मानव देह को, जिसकी क्षमता 50 वाट के बल्ब जितनी है, क्रियायोग के अत्यधिक अभ्यास से उत्पन्न करोड़ों वाट की शक्ति को सहन करने योग्य बनाया जाता है।

अंधकार युगों में लुप्त हो जाने के बाद फिर से इस सरल और निश्चित रूप से फल देने वाली क्रियायोग पद्धति को न केवल संसार का त्याग करने वाले संन्यासियों अपितु साधारण लोगों के लिए भी उपलब्ध करने वाले महामृत्युंजय बाबाजी और उनके शिष्य लाहिडी महाशय के प्रति मन कृतज्ञता से भर जाता है।

इन महान् संतों की अनुकंपा को शिरोधार्य कर, आइए इस अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर हम स्वयं के कल्याण हेतु क्रियायोगी बनें और अपने शरीर और मन को उस महाप्राणशक्ति, जो सम्पूर्ण सृष्टि की आधारशीला है, की अनन्त संभावनाओं को व्यक्त करने के योग्य बनाएँ। अधिक जानकारी : yssi.org

लेखिका- डॉ. (श्रीमती) मंजु लता गुप्ता. डॉ. (श्रीमती) मंजु लता गुप्ता ने दिल्ली सरकारी स्कूल में शिक्षिका के रूप में काम किया।

Proudly powered by WordPress | Theme : News Elementor by BlazeThemes